top of page
जानकीस्तोत्रम् | Janaki stotram
श्रीजानकीस्तोत्रम्
नीलनीरज-दलायतेक्षणां लक्ष्मणाग्रज-भुजावल म्बिनीम् ।
शुद्धिमिद्धदहने प्रदित्सतीं भावये मनसि रामवल्लभाम् ॥ १॥
जिनके नील कमल-दल के सदृश नेत्र हैं, जिन्हें श्रीराम की भुजा
का ही अवलंबन है, जो प्रज्वलित अग्नि में अपनी पवित्रता की परीक्षा देना
चाहती हैं, उन रामप्रिया श्री सीता माता का मैं मन-ही-मन में ध्यान
(भावना) करता हूम् । १
रामपाद-विनिवेशितेक्षणामङ्ग-कान्तिपरिभूत-हाटकाम् ।
ताटकारि-परुषोक्ति-विक्लवां भावये मनस…