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श्री कुमारगुप्त प्रथम

गुप्त साम्राज्य के एक शक्तिशाली शासक थे, जिनका शासनकाल सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) के बाद आया। उन्होंने गुप्त साम्राज्य को स्थिरता और समृद्धि के साथ आगे बढ़ाया। अपने पिता की भाँति वे भी एक योग्य प्रशासक, संरक्षक, और धर्मप्रेमी राजा थे। उन्होंने "महेंद्रादित्य" की उपाधि धारण की और उनके शासनकाल को गुप्त साम्राज्य का "स्वर्ण युग" कहा जाता है।

Kumar Gupta Pratham

कुमारगुप्त प्रथम (Kumaragupta I)

सम्राट, गुप्त वंशशासनकाल: लगभग 415 ई. – 455 ई.

शासनकाल की प्रमुख विशेषताएँ:
  • राज्य विस्तार:कुमारगुप्त के शासनकाल में गुप्त साम्राज्य पश्चिम में मालवा, गुजरात से लेकर बंगाल और असम तक फैला हुआ था।

  • प्रशासनिक व्यवस्था:उन्होंने अपने पिता की प्रभावी प्रशासनिक प्रणाली को आगे बढ़ाया और साम्राज्य को सुचारू रूप से चलाया।

  • धार्मिक नीति:वे भगवान विष्णु के उपासक थे लेकिन साथ ही उन्होंने बौद्ध और जैन धर्म को भी संरक्षण दिया।स्कंदगुप्त जैसे उनके उत्तराधिकारियों के समय बौद्ध धर्म के नालंदा विश्वविद्यालय की नींव रखी गई, जिसकी योजना संभवतः कुमारगुप्त ने ही बनाई थी।

  • मुद्राएँ और उपाधियाँ:उनकी जारी की गई मुद्राओं पर उन्हें "महेंद्रादित्य" और "श्रीकुमारगुप्त" कहा गया है, जिससे उनकी वैभवपूर्ण छवि प्रकट होती है।

  • संस्कृति और शिक्षा:उनके काल में कला, साहित्य और शिक्षा का व्यापक विकास हुआ। विद्वानों और कलाकारों को संरक्षण मिला।

  • अंतिम काल और हूणों का खतरा:उनके शासनकाल के अंतिम वर्षों में हूणों (Huns) के आक्रमण का खतरा मंडराने लगा, लेकिन उनके उत्तराधिकारी स्कंदगुप्त ने उन्हें रोका।

ऐतिहासिक स्रोत:
  • भीतरी शिलालेख (Bhitari Inscription)

  • एरण शिलालेख (Eran Inscription)

  • मुद्राएँ (Coins)

  • विभिन्न पुरातात्विक साक्ष्य और बौद्ध ग्रंथों का उल्लेख

उपलब्धियाँ:

क्षेत्र

विवरण

धर्म

विष्णु भक्त, धर्म सहिष्णु

कला

स्थापत्य और सिक्का निर्माण में उत्कृष्टता

प्रशासन

संगठित प्रशासनिक प्रणाली

सैन्य

सीमाओं की सुरक्षा और विस्तार

शिक्षा

नालंदा महाविहार की योजना

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कुमारगुप्त प्रथम एक ऐसे सम्राट थे जिन्होंने गुप्त साम्राज्य की नींव को और भी अधिक मजबूत किया। उनका शासन एक स्थिर, समृद्ध और सांस्कृतिक उत्कर्ष का प्रतीक है। वे न केवल एक शक्तिशाली शासक थे बल्कि एक दूरदर्शी प्रशासक और धर्मनिष्ठ नेता भी थे। उनका युग गुप्त वंश के गौरवपूर्ण अध्यायों में एक स्वर्णिम पृष्ठ है।

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