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श्री सैम मानेकशॉ

(फील्ड मार्शल सैम होर्मुसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ) भारतीय सेना के सबसे महान और सम्मानित सेनानायकों में से एक थे। वे पहले भारतीय सैन्य अधिकारी थे जिन्हें फील्ड मार्शल की सर्वोच्च सैन्य उपाधि से नवाज़ा गया। गोरखा सैनिकों द्वारा उन्हें "सैम बहादुर" के नाम से सम्मानित किया गया, जो उनके अद्वितीय साहस, नेतृत्व और सरल व्यक्तित्व का प्रतीक बना। चार दशकों की सैन्य सेवा और पाँच युद्धों में भागीदारी के साथ, उन्होंने 1971 के भारत-पाक युद्ध में ऐतिहासिक विजय प्राप्त कर बांग्लादेश की स्वतंत्रता में अहम भूमिका निभाई। सैम बहादुर भारतीय सैन्य इतिहास के स्वर्णिम अध्याय हैं – एक सच्चे योद्धा, राष्ट्रभक्त और प्रेरणास्त्रोत।

Shri Sam Manekshaw

सेना के शेर: फील्ड मार्शल श्री सैम मानेकशॉ की प्रेरणादायक जीवनी

(भारत माता के सच्चे सपूत को समर्पित)

फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ भारतीय सैन्य इतिहास के वो अनमोल रत्न हैं, जिनकी रणनीति, देशभक्ति और निर्भीक नेतृत्व ने भारत को 1971 के भारत-पाक युद्ध में ऐतिहासिक विजय दिलाई। वे भारतीय सेना के पहले फील्ड मार्शल बने और आज भी उन्हें उनकी दूरदर्शिता, व्यंग्यात्मक बुद्धिमत्ता और निर्भय निर्णयों के लिए याद किया जाता है।

  • नाम: फील्ड मार्शल श्री सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ
  • जन्म: 3 अप्रैल 1914, अमृतसर, पंजाब, ब्रिटिश भारत
  • निधन: 27 जून 2008, वेलिंगटन, तमिलनाडु
  • पद: भारतीय थलसेना के पहले फील्ड मार्शल (1973)

जीवन परिचय

"वीरता, नेतृत्व और मातृभूमि के प्रति समर्पण का प्रतीक"

श्री सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ, एम.सी. (3 अप्रैल 1914 – 27 जून 2008),भारत माता के उन वीर सपूतों में से एक थे, जिनका नाम सुनते ही देशभक्ति का गर्व सिर उठा लेता है। पूरे देश ने उन्हें स्नेह और सम्मान से "सैम बहादुर"कहा — एक ऐसा उपनाम जो उनकी अद्वितीय साहसिकता और फौलादी इरादों का जीवंत प्रमाण बन गया।

वे वह योद्धा थे, जिन्होंने 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान भारतीय सेना की कमान संभालकर इतिहास की धारा बदल दी। वे भारतीय सेना के पहले अधिकारी बने जिन्हें फील्ड मार्शल जैसे सर्वोच्च सैन्य पद से सम्मानित किया गया — यह केवल रैंक नहीं, बल्कि राष्ट्र के प्रति उनकी अगाध निष्ठा और अपार सेवा का प्रतीक था।

उनका सैन्य जीवन किसी महाकाव्य से कम नहीं था — चार दशकों तक की सैन्य सेवा, जिसकी शुरुआत उन्होंने 1932 में देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी के पहले बैच से की थी। उन्हें