प्रकाश से प्रज्ञा तक: गुरु नानक देव जी और उनकी शिक्षाओं की आज के युग में प्रासंगिकता
- Wiki Desk(India)
- Nov 18, 2024
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जब अंधकार में जन्म लेता है एक प्रकाश
प्रकाश पर्व केवल एक पावन स्मृति नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक जागरण की वर्षगांठ है — एक ऐसे युगद्रष्टा की स्मृति जो समय की तमसपूर्ण धारा में आशा, समानता और प्रेम की लौ लेकर आया। गुरु नानक देव जी न केवल सिख धर्म के संस्थापक थे, बल्कि वे उस व्यापक मानवीय चेतना के प्रतीक थे जो धर्म के नाम पर फैली असमानता, अंधविश्वास और सामाजिक विघटन को चुनौती देने उठी। उनके जन्मोत्सव को "प्रकाश पर्व" इसीलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने मानवता को आत्मबोध और ईश्वर की अनुभूति के मार्ग पर चलने का साहस दिया — जैसे अज्ञानता के अंधकार में ज्ञान का दीपक जले।
प्रारंभिक जीवन और आध्यात्मिक जागरण
गुरु नानक का जन्म 1469 ईस्वी में वर्तमान पाकिस्तान स्थित तलवंडी (अब ननकाना साहिब) नामक गाँव में हुआ। उनका बाल्यकाल सामान्य होते हुए भी अत्यंत विलक्षण था। किशोरावस्था में ही उनका झुकाव आध्यात्मिकता और चिंतन की ओर हो चला था। सुल्तानपुर लोदी में एक सरकारी नौकरी के दौरान उन्होंने जीवन की सांसारिकता को निकट से देखा और यहीं, लगभग तीस वर्ष की आयु में, काली बेई नदी के तट पर उन्हें एक गहन दिव्य अनुभूति हुई — जिसका निचोड़ था: "न को हिन्दू, न मुसलमान"। यह वाक्य न केवल उनकी आध्यात्मिक चेतना की गहराई दर्शाता है, बल्कि उस समय के धार्मिक द्वेष को भी ललकारता है।
भक्ति आंदोलन के निर्गुण प्रवाह में गुरु नानक
गुरु नानक निर्गुण भक्ति परंपरा के प्रमुख स्तंभों में से एक थे। उन्होंने ईश्वर को एक निराकार, सर्वव्यापी शक्ति के रूप में स्वीकार किया और मूर्ति पूजा जैसे बाह्याचारों का खंडन किया। उनकी आध्यात्मिक दृष्टि में कबीरदास जैसी संत चेतना की स्पष्ट झलक मिलती है — वह चेतना जो धर्मों को जोड़ती है, तोड़ती नहीं। "नाम जपना" — ईश्वर के नाम का ध्यान, "कीरत करो" — ईमानदारी से कर्म, और "वंड छको" — साझा करना, उनके जीवन और विचारधारा के तीन आधार बने। यही तीन सिद्धांत आज भी सिख धर्म की बुनियाद हैं।
यात्राएँ और सार्वभौमिक संदेश
गुरु नानक देव जी ने केवल विचारों की शिक्षा नहीं दी, बल्कि उन्हें जीया और फैलाया भी। उन्होंने अपने मुस्लिम साथी भाई मरदाना के साथ भारत, अफगानिस्तान, मक्का-मदीना और तिब्बत जैसे दूरस्थ क्षेत्रों की यात्राएँ कीं। वे शुद्ध धर्म नहीं, मानव धर्म की बात करते थे। उन्होंने हर पंथ, हर जाति, हर वर्ग को सन्मार्ग दिखाया। उनके भजन, जिनमें उनकी गहरी आध्यात्मिकता और जीवन-दर्शन प्रतिबिंबित होता है, को पाँचवें गुरु अर्जुन देव जी ने आदि ग्रंथ में संग्रहीत किया।
करतारपुर और संगत की स्थापना
अपने जीवन की अंतिम पारी में गुरु नानक ने करतारपुर (वर्तमान पाकिस्तान) में एक संगठित सिख समुदाय की स्थापना की। यहाँ शिष्य एक साथ रहकर सेवा, साधना और संगति के माध्यम से आध्यात्मिकता का अनुभव करते थे। उन्होंने भाई लहना (जो बाद में गुरु अंगद बने) को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर सिख परंपरा में उत्तराधिकार की नींव रखी। इस परंपरा ने भविष्य में सिख धर्म को एक संगठित, सशक्त और सेवा-प्रधान धर्म के रूप में खड़ा किया।
गुरु नानक की शिक्षाएँ: समय से परे सत्य
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी 15वीं शताब्दी में थीं।
एक ओंकार: एकेश्वरवाद की अद्वितीय अवधारणा, जो यह स्पष्ट करती है कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड में केवल एक ही सत्ता है।
नाम जपना: ईश्वर के नाम का स्मरण आंतरिक शुद्धि और आत्मिक शांति का मार्ग है।
ईमानदारी से जीविकोपार्जन: किसी भी धर्म का आधार सत्य और परिश्रम होना चाहिए, न कि पाखंड।
वंड छको: समाज के दुर्बलों के साथ अपनी आय साझा कर समाज में करुणा और समता की भावना का विकास।
धर्मों के प्रति सम्मान: वेद, कुरान, बाइबल जैसे ग्रंथों में निहित मूल संदेशों की उन्होंने समान रूप से सराहना की और मान्यता दी।
स्त्री समानता: उन्होंने कहा – "सो क्यों मंदा आखिए, जित जमे राजान", अर्थात् उस नारी को क्यों तुच्छ समझें जिससे राजा तक जन्म लेते हैं।
मूर्तिपूजा का खंडन: उन्होंने परमेश्वर को रूप, मूर्ति और भाषा से परे बताया।
गुरु नानक के वचन: एक जीवित दर्शन
गुरु नानक देव जी के वचनों में अद्भुत गहराई है:
"यदि आप अपना मन शांत रख सकें तो आप दुनिया जीत लेंगे।"
"केवल वही बोलें जिससे आपको और दूसरों को सम्मान मिले।"
"अपने समय और आय का एक हिस्सा प्रभु और समाज को समर्पित करें।"
"जो स्वयं पर विश्वास रखता है, वही सच्चे अर्थों में ईश्वर में विश्वास कर सकता है।"इन संदेशों में आज की सामाजिक अशांति, असमानता और आत्मिक भ्रम के लिये समाधान छिपा है।
गुरु परंपरा और उनका योगदान
गुरु नानक से लेकर गुरु गोबिंद सिंह तक दस गुरुओं की परंपरा ने सिख धर्म को न केवल मजबूत नींव दी, बल्कि उसे साहस, सेवा और समर्पण के शिखर तक पहुँचाया।
गुरु अंगद ने गुरुमुखी लिपि को प्रतिष्ठा दी।
गुरु अमरदास ने सती और पर्दा प्रथा के विरुद्ध खड़े होकर समाज को झकझोरा।
गुरु अर्जुन देव ने आदि ग्रंथ की रचना की, तो गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना कर आध्यात्मिकता को शौर्य से जोड़ा।इन सभी योगदानों की जड़ गुरु नानक की उस प्रकाशमान चेतना में है, जिसने विचार और कर्म को एक साथ जोड़कर धर्म को जीवन का मार्ग बनाया।
आज के युग में गुरु नानक की रोशनी
आज जब दुनिया जातिवाद, धार्मिक असहिष्णुता, सामाजिक असमानता और आत्मिक खोखलेपन से जूझ रही है, तब गुरु नानक की शिक्षाएँ एक दिव्य पथ-प्रदर्शक के रूप में सामने आती हैं। उनके विचार सार्वभौमिक हैं, उनकी दृष्टि समन्वय की है, और उनका जीवन साक्षात् "संत-कर्मयोग" का आदर्श है। प्रकाश पर्व केवल उत्सव नहीं, बल्कि यह आत्मचिंतन, सेवा, समता और करुणा के मूल्यों को अपने जीवन में उतारने का अवसर है।