मनोरंजन: जीवन की मधुर संगीतमय धारा
- Wiki Desk
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मनोरंजन: जीवन की मधुर संगीतमय धारा— जहाँ थम जाता है तनाव, खिल उठती है चेतना
मनुष्य की चेतना केवल श्रम और चिंतन में नहीं सिमटी है, वह आनंद, सौंदर्य और सृजन की खोज में भी निरंतर गतिशील रही है। इस सृष्टि में मनुष्य अकेला ऐसा प्राणी है जिसे केवल जीवित रहने की नहीं, बल्कि अर्थपूर्ण और आनंदमयी जीवन की लालसा होती है। मनोरंजन, इस अर्थपूर्ण जीवन की एक ऐसी मधुर संगीतमय धारा है जो न केवल हमारे मन को हल्का करती है, बल्कि आत्मा को भी ताजगी प्रदान करती है। यह जीवन की उस थकान को धो देता है जिसे व्यक्ति अपने दायित्वों, सामाजिक प्रतिबद्धताओं और निरंतर प्रतिस्पर्धा में अनुभव करता है।
मनोरंजन का अर्थ और रूपांतरण
'मनोरंजन' का शाब्दिक अर्थ है – मन का रंजन करना, अर्थात् मन को प्रसन्न करना। परंतु केवल प्रसन्नता तक सीमित नहीं, मनोरंजन व्यक्ति के मानसिक, भावनात्मक और सांस्कृतिक जीवन का गहरा अंग है। समय के साथ इसके स्वरूप बदले हैं। प्राचीन काल में यह नाट्य, संगीत, लोकगीत, कथाएँ और यज्ञों की सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के रूप में था। आज यह सिनेमा, टेलीविजन, डिजिटल मीडिया, सोशल नेटवर्किंग, म्यूज़िक ऐप्स, वेब सीरीज़, वीडियो गेम्स और इवेंट्स में परिवर्तित हो चुका है। फिर भी इसका मूल उद्देश्य वही है—मनुष्य की चेतना को विश्रांति देना और समाज में सौंदर्य व रचनात्मकता का विस्तार करना।
मानव सभ्यता में मनोरंजन का स्थान
प्राचीन भारत में नाट्यशास्त्र, संगीत, कला, और नृत्य न केवल मनोरंजन के साधन थे, बल्कि आध्यात्मिक उन्नयन के भी माध्यम थे। भरतमुनि के अनुसार, “नाट्य वेद की पाँचवीं विधा है”, जो वेदों से उत्पन्न होकर समाज को धर्म, नीति, अर्थ और मोक्ष की शिक्षा भी देता है। रामलीला, रासलीला, कथकली, यक्षगान, भवाई, नौटंकी जैसी लोकनाट्य परंपराएँ इस बात का साक्ष्य हैं कि भारत में मनोरंजन कभी केवल टाइम पास नहीं रहा – यह संस्कारों का संवाहक और समाज का दर्पण रहा है।
मनोरंजन और समाज: प्रतिबिंब और प्रेरणा
आज जब विश्व अत्यधिक तनाव, अवसाद और मानसिक विकृतियों की ओर बढ़ रहा है, वहाँ सकारात्मक मनोरंजन समाज के लिए एक औषधि जैसा कार्य करता है। फिल्में, नाटक, कविता-पाठ, संगीत-प्रस्तुति अथवा हास्य-व्यंग्य – ये सब न केवल व्यक्ति को मानसिक राहत देते हैं, बल्कि सामाजिक मुद्दों, संघर्षों और बदलावों को भी दर्शाते हैं। जब कोई फिल्म सामाजिक कुरीति पर चोट करती है, या एक कविता भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज़ उठाती है, तो वह केवल मनोरंजन नहीं रह जाती, वह समाज के लिए प्रेरणा बन जाती है।
डिजिटल युग और मनोरंजन की नवीन व्याख्या
इक्कीसवीं सदी ने मनोरंजन को एक डिजिटल क्रांति का अनुभव कराया है। OTT प्लेटफॉर्म्स, यूट्यूब, इंस्टाग्राम, गेमिंग ऐप्स और पॉडकास्ट्स ने मनोरंजन को बहुआयामी बना दिया है। अब मनोरंजन केवल मंचों और पर्दों तक सीमित नहीं, बल्कि हर जेब में मौजूद मोबाइल फ़ोन तक पहुँच चुका है। यह democratization (लोकतंत्रीकरण) है – जहाँ हर कोई दर्शक भी है और निर्माता भी। किंतु इसके साथ-साथ प्रश्न भी खड़े होते हैं—क्या यह मनोरंजन अब मूल्यहीन, अशालीन और अति-व्यसनी होता जा रहा है?
मर्यादा का आलंबन: मनोरंजन की दिशा
मनोरंजन का उद्देश्य यदि केवल भटकाव बन जाए, तो वह मानव चेतना के उत्थान की बजाय पतन का मार्ग बन सकता है। आज आवश्यकता है एक मर्यादित मनोरंजन की—जो व्यक्ति को आनंद तो दे, पर उसका मनोबल न तोड़े। जिसमें हास्य हो, पर उपहास न हो; जिसमें कल्पना हो, पर अश्लीलता नहीं; जिसमें समाज को जोड़ने की शक्ति हो, तोड़ने की नहीं। सृजनशील मनोरंजन वही है जो व्यक्ति को उसके भीतर के कलाकार, विचारक और संवेदनशील मानव से जोड़ता है।
मनोरंजन: स्वास्थ्य और संतुलन का सेतु
मनोविज्ञान भी मानता है कि मनोरंजन मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक आवश्यक तत्व है। यह चिंता को कम करता है, जीवन में नवीन ऊर्जा भरता है और संबंधों को मज़बूत करता है। बच्चों के विकास में, युवाओं की रचनात्मकता में, बुज़ुर्गों की प्रसन्नता में—हर स्थान पर मनोरंजन का एक स्नेहिल स्थान है। यह जीवन में संतुलन बनाए रखने का एक सहज सेतु है—न अधिक गंभीरता, न अधिक लापरवाही।

निष्कर्ष: आनंद की वह पगडंडी जो मनुष्य को मनुष्यता से जोड़ती है
अतः कहा जा सकता है कि मनोरंजन जीवन की एक स्वाभाविक, सुंदर और सृजनात्मक आवश्यकता है। यह केवल हँसी या चुटकुलों का विषय नहीं, यह मनुष्य के भीतर छुपे कलाकार को जगाने वाली ऊर्जा है। जब मनोरंजन संवेदनशीलता, सृजन, सत्य, सौंदर्य, और संस्कृति से जुड़ता है, तब वह जीवन को केवल रंगीन ही नहीं बनाता, बल्कि अर्थपूर्ण भी बनाता है।मनोरंजन, यदि मर्यादा के भीतर रहे, तो वह केवल दिल को नहीं—समाज को भी बदल सकता है। यही उसकी दिव्यता है, यही उसका भव्य प्रभाव।