महासागर की लहरों से इतिहास तक: भारत का समुद्री गौरव और वर्तमान स्थिति
- Wiki Desk(India)

- Sep 25, 2023
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एक सभ्यता की लहरों पर सवार अनंत यात्रा
भारत का इतिहास केवल धरती की सीमाओं तक ही सीमित नहीं रहा है, बल्कि इसकी पहचान समुद्र की लहरों पर भी अंकित रही है। भारतीय उपमहाद्वीप, जो तीन ओर से समुद्र से घिरा हुआ है, प्राचीन काल से ही समुद्री व्यापार, नाव निर्माण, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और समुद्री सामर्थ्य का केंद्र रहा है। हाल ही में भारतीय नौसेना द्वारा पारंपरिक टंकाई (सिलाई) विधि से निर्मित 21 मीटर लंबे जहाज़ को ओडिशा से इंडोनेशिया के बाली तक भेजने की योजना ने न केवल ऐतिहासिक स्मृतियों को पुनर्जीवित किया है, बल्कि भारत के समृद्ध समुद्री इतिहास को वैश्विक मंच पर पुनः प्रतिष्ठित करने की दिशा में एक उल्लेखनीय प्रयास भी किया है।
प्राचीन भारत में समुद्री व्यापार का उत्कर्ष
भारतीय समुद्री इतिहास की जड़ें सिंधु घाटी सभ्यता तक जाती हैं, जहाँ लोथल जैसे प्राचीन बंदरगाह समुद्री व्यापार की अत्यंत उन्नत संरचनाओं के उदाहरण थे। लोथल का डॉकयार्ड इस बात का प्रमाण है कि प्राचीन भारतीयों को समुद्री ज्वार-भाटों और नौवहन की गूढ़ समझ थी। वैदिक साहित्य में भी समुद्र यात्रा और व्यापार के उल्लेख मिलते हैं, जिससे स्पष्ट होता है कि आर्यों के समय में भी समुद्री मार्गों का प्रयोग व्यापार और सांस्कृतिक संपर्क हेतु किया जाता था।
तमिल संगम साहित्य और जातक कथाएँ इस बात की पुष्टि करती हैं कि दक्षिण भारत के चोल, पांड्य और चेर राजवंशों ने समुद्र के माध्यम से दक्षिण-पूर्व एशिया तक व्यापार, धर्म और संस्कृति का विस्तार किया। पहली शताब्दी ईसा पूर्व तक भारत से रोम तक व्यापारिक संबंध इतने गहरे हो गए थे कि कोरोमंडल तट से मसाले, रत्न और हाथी तक निर्यात किए जाते थे। मानसूनी हवाओं की सहायता से होने वाली नौवहन व्यवस्था इस पूरे व्यापारिक तंत्र का मेरुदंड बन गई थी।
विविध जहाज़ निर्माण परंपराएँ और समुद्री कौशल
भारत की पारंपरिक जहाज़ निर्माण विधियाँ विशिष्ट और स्थानीय अनुकूलता पर आधारित थीं। सिलाई विधि, जिसे ‘टंकाई’ कहा जाता है, नावों में कील लगाने के बजाय नारियल की रस्सियों से तख्तों को जोड़ने की तकनीक थी, जो अरब सागर की नम जलवायु में बेहतर लचीलापन प्रदान करती थी। इन पारंपरिक जहाज़ों में मैंग्रोव और सागौन जैसी टिकाऊ लकड़ियों का उपयोग किया जाता था।
यह तकनीक आज भी प्रासंगिक है और आधुनिक सामरिक एवं सांस्कृतिक पुनर्निर्माण परियोजनाओं में इसे दोबारा जीवित किया जा रहा है। भारत की यह समुद्री निर्माण परंपरा, विशेषकर गुजरात, कोंकण और मलाबार तट पर, आज भी समुद्री संस्कृति के गौरवशाली प्रतीक के रूप में विद्यमान है।
भारत: हिंद महासागर का ‘ट्रेड लेक’ केंद्र
प्राचीन और मध्यकालीन भारत हिंद महासागर व्यापार नेटवर्क का प्रमुख केंद्र था। पश्चिम में भारत अफ्रीका, अरब और यूरोप से व्यापार करता था, जबकि पूर्व में यह इंडोनेशिया, मलेशिया, चीन और जापान तक पहुँचा हुआ था। भरूच, मुज़िरिस, ताम्रलिप्ति, पत्तनचेरु और कालियाकोट जैसे बंदरगाह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के संपन्न केंद्र थे।
मिस्र के बेरेनिके में भारतीय कलाकृतियों और संस्कृत शिलालेखों की उपस्थिति, भारत की व्यापारिक और सांस्कृतिक पहुंच का प्रमाण है। यह भारत की उस ऐतिहासिक भूमिका को रेखांकित करता है, जहाँ समुद्र सिर्फ व्यापार का मार्ग नहीं था, बल्कि सभ्यताओं के संवाद और धर्म, कला तथा विचारों की आवाजाही का माध्यम था।
आधुनिक भारत में समुद्री परिवहन की स्थिति
आज का भारत विश्व के शीर्ष 20 समुद्री देशों में से एक है, और यह अपने कुल व्यापार का लगभग 95% मात्रा और 68% मूल्य समुद्री मार्ग से ही संचालित करता है। भारत का अलंग (गुजरात) स्थित जहाज़ तोड़ने वाला यार्ड विश्व का सबसे बड़ा यार्ड है और भारत वैश्विक जहाज़ पुनर्चक्रण बाज़ार में 30% की हिस्सेदारी रखता है।
भारत के पास दिसंबर 2021 तक 13,011 हजार ग्रॉस टन के जहाज़ों का बेड़ा था, जोकि वैश्विक बेड़े का मात्र 1.2% है। इस आंकड़े को बढ़ाने के लिये सागरमाला परियोजना और मैरीटाइम इंडिया विज़न 2030 जैसे प्रयास किए जा रहे हैं, जिनका उद्देश्य बंदरगाहों को आधुनिक बनाना, रसद नेटवर्क को मजबूत करना, और देश को एक मजबूत समुद्री राष्ट्र में परिवर्तित करना है।
भारत में 12 प्रमुख और लगभग 200 गैर-प्रमुख बंदरगाह हैं। जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट सबसे बड़ा सरकारी बंदरगाह है जबकि मुंद्रा पोर्ट सबसे बड़ा निजी बंदरगाह है। इन दोनों का भारत के कंटेनर ट्रैफिक में महत्वपूर्ण योगदान है। भारत सरकार द्वारा मैरीटाइम क्लस्टर्स और समुद्री शिक्षा केंद्रों की स्थापना से समुद्री क्षेत्र में रोजगार और नवाचार के नए अवसर सृजित हो रहे हैं।
संस्कृति और समुद्र: प्रोजेक्ट मौसम और सामुद्रिक विरासत
भारत के समुद्री इतिहास की पुनर्पुष्टि के लिये प्रोजेक्ट मौसम एक अत्यंत महत्त्वाकांक्षी सांस्कृतिक पहल है, जो हिंद महासागर से जुड़े 39 देशों के साथ भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को पुनर्स्थापित करना चाहती है। इसके माध्यम से भारत अपने समुद्री अतीत की खोज ही नहीं कर रहा, बल्कि क्षेत्रीय साझेदारी, पर्यटन और सांस्कृतिक कूटनीति के माध्यम से वैश्विक प्रभाव का विस्तार भी कर रहा है।
भारत का समुद्री इतिहास एक जीवंत गाथा है, जो केवल व्यापार और नौवहन तक सीमित नहीं, बल्कि सांस्कृतिक समरसता, कूटनीतिक संबंध और वैश्विक संवाद की धरोहर है। आज जब भारत ‘ब्लू इकोनॉमी’ और वैश्विक समुद्री शक्तियों की कतार में खड़ा होने की आकांक्षा रखता है, तब हमारे प्राचीन समुद्री गौरव की स्मृति और पुनर्निर्माण की पहल, जैसे प्रोजेक्ट मौसम और पारंपरिक टंकाई विधि से निर्मित जहाज़ का समुंदर पार करना, हमारी आत्मा को अपनी जड़ों से जोड़ने का सशक्त माध्यम बनती हैं।
एक समृद्ध समुद्री अतीत की लहरें आज फिर भारत के भविष्य की दिशा तय कर रही हैं – लहरों के साथ बहता नहीं, दिशा देता हुआ भारत।



