श्री राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण: सनातन की आत्मा का पुनर्जागरण
- Wiki Desk

- Jan 23, 2024
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Updated: Jul 12

श्रीराम भारतवर्ष की आत्मा हैं। वह केवल एक राजा नहीं, मर्यादा पुरुषोत्तम हैं – जिनका जीवन धर्म, सत्य, सेवा और त्याग की पराकाष्ठा है। अयोध्या की पवित्र भूमि, जहाँ प्रभु राम ने अवतार लिया, वह करोड़ों हिंदुओं की श्रद्धा का केन्द्र है। लेकिन इस भूमि पर जो इतिहास हुआ, वह केवल ईंट और पत्थरों की कहानी नहीं है – यह आत्मा के अपमान और आत्मगौरव के पुनः जागरण की अमर गाथा है।
श्रीराम का जीवन और उनकी अमर सीख
श्रीराम का जन्म त्रेतायुग में अयोध्या के रघुवंशी कुल में हुआ। उन्होंने केवल राक्षसों का विनाश नहीं किया, अपितु धर्म की पुनर्स्थापना, पिता की आज्ञा पालन, भ्रातृप्रेम, प्रजा के प्रति करुणा और सत्य के मार्ग पर चलने का जो आदर्श प्रस्तुत किया, वह सनातन काल तक अनुकरणीय रहेगा।उनकी मर्यादा, शौर्य, और त्याग हर भारतीय के हृदय में जीवित है। राम राज्य सिर्फ शासन का मॉडल नहीं, लोककल्याणकारी आदर्श है।
अयोध्या की पवित्र जन्मभूमि का इतिहास
जहाँ आज श्रीराम मंदिर निर्मित हो रहा है, वही भगवान श्रीराम का जन्मस्थल है। शास्त्रों, इतिहास और परंपराओं में इस स्थान को राम जन्मस्थान के रूप में मान्यता प्राप्त है। यहां पर प्राचीन काल से एक मंदिर था, जहां भक्तों का आना-जाना लगा रहता था।
लेकिन 1528 ईस्वी में मुगल आक्रांता बाबर के सेनापति मीर बाकी ने इस मंदिर को विध्वंस कर एक ढांचा खड़ा किया, जिसे ‘बाबरी मस्जिद’ कहा गया। यह मंदिर तोड़ने का कार्य केवल एक ढांचे का ध्वंस नहीं था, यह भारत की आत्मा और अस्मिता को आहत करने वाला कुकृत्य था।
राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन: आत्मगौरव की पुनर्जागरण यात्रा
400 से अधिक वर्षों तक हिंदू समाज ने इस भूमि को वापस पाने के लिए संघर्ष किया। जन-जन की चेतना में यह प्रश्न धधकता रहा: "क्या प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि पर उनके लिए मंदिर नहीं होगा?"1960-1980 के दशक में विश्व हिंदू परिषद, संघ परिवार, अनेकों साधु-संतों, और बाद में भारतीय जनता पार्टी ने इस आंदोलन को जन-जागरण का रूप दिया।
1990 में कारसेवा हुई, जिसमें हजारों रामभक्तों ने अपनी जान की बाज़ी लगाई।1992 में ढांचा गिराया गया और एक असहज इतिहास को पुनः सत्य के धरातल पर लाने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
लंबी न्यायिक लड़ाई: सत्य की विजय
इस भूमि को लेकर 1949 से लेकर 2019 तक कई कानूनी लड़ाइयाँ लड़ी गईं। लाखों पन्नों की सुनवाई, ऐतिहासिक दस्तावेज़, पुरातात्विक प्रमाण (ASI रिपोर्ट) और जनश्रद्धा – सब कुछ अदालत के सामने प्रस्तुत किया गया।
9 नवम्बर 2019 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया – यह भूमि श्रीराम जन्मभूमि है, और यहाँ पर मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ।यह केवल कोर्ट की जीत नहीं थी – यह भारत की आत्मा, संस्कृति और अस्मिता की विजय थी।
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का गठन
फैसले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की सरकार ने 2020 में 'श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट' का गठन किया।इस ट्रस्ट को मंदिर निर्माण की पूर्ण स्वतंत्रता दी गई। प्रधानमंत्री ने संसद में इस ट्रस्ट की घोषणा की और हिंदू समाज ने हर्षोल्लास से स्वागत किया।
भव्य मंदिर निर्माण: आस्था का आलोक
योगी आदित्यनाथ जी की सरकार ने भूमि उपलब्ध कराई, सुरक्षा सुनिश्चित की और पूरे आयोजन की व्यवस्था को उत्कृष्ट बनाया।विश्वभर से अरबों रुपये का दान आया, ग्रामीण, शहरी, गरीब, अमीर – सभी ने प्रभु राम के लिए अपना योगदान दिया।
मंदिर निर्माण वैदिक परंपराओं और शिल्पशास्त्र के अनुसार किया जा रहा है। लगभग 360 फीट लंबा, 235 फीट चौड़ा और 161 फीट ऊँचा – यह मंदिर भारतीय वास्तुकला का गौरवशाली प्रतीक है।
प्राण प्रतिष्ठा: प्रभु राम का पुनः आगमन
22 जनवरी 2024 को प्रभु श्रीराम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं 11 दिवसीय अनुष्ठान कर प्रभु का स्वागत किया – यह न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान था, यह भारत के आत्म-सम्मान और सांस्कृतिक पुनरुद्धार का प्रतीक था।
एक राष्ट्र, एक चेतना: श्रीराम का संदेश
यह मंदिर केवल एक इमारत नहीं है। यह हिंदू समाज के सदियों के तप, बलिदान और दृढ़ संकल्प की अमिट गाथा है। यह बताता है कि
"अन्याय चाहे कितना भी लंबा चले, सत्य की विजय निश्चित है।"
✍️ संपादकीय प्रेरणा:
श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण ने भारत को उसकी आध्यात्मिक जड़ों से पुनः जोड़ा है। यह सिर्फ एक धार्मिक घटना नहीं, यह भारत की सांस्कृतिक अस्मिता का पुनर्जन्म है।जो देश कभी मंदिर तोड़े जाने से व्यथित था, आज उसी स्थान पर रामलला अपने सिंहासन पर विराजमान हैं।यह विश्वास की जीत है। यह राष्ट्र के आत्मगौरव की जीत है। यह "जय श्रीराम" की अनुगूंज में गूंजता हुआ सनातन का उज्ज्वल भविष्य है।
जय श्रीराम।



