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नवसंजीवनी की ओर भारत: आयुर्वेद का पुनरुत्थान और वैश्विक महत्व

  • Writer: Wiki Desk(India)
    Wiki Desk(India)
  • Sep 20, 2022
  • 4 min read
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‘प्राकृतिक जीवनशैली की ओर लौटना ही आयुर्वेद का मूल सन्देश है।’

भूमिका: भारत की आत्मा से जुड़ा जीवन विज्ञान

भारत की सांस्कृतिक आत्मा, आध्यात्मिक परंपराओं और स्वास्थ्य दृष्टिकोणों में जो विज्ञान हज़ारों वर्षों से जीवंत है, वह है — आयुर्वेद। यह केवल एक चिकित्सा पद्धति नहीं, बल्कि जीवन को समझने और जीने का एक समग्र, प्राकृतिक और संतुलित मार्ग है। जब आधुनिक जीवनशैली रोगों और मानसिक असंतुलन को जन्म देती है, तब आयुर्वेद एक ऐसी आशा की किरण बनकर उभरता है जो न केवल शरीर को, बल्कि मन और आत्मा को भी संतुलन देता है।

आधुनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में जहाँ तकनीक और रासायनिक दवाओं का बोलबाला है, वहीं आयुर्वेद एक शुद्ध, धीमा लेकिन स्थायी, व्यक्ति-केंद्रित उपचार प्रणाली के रूप में पुनः स्थापित हो रहा है। यह आवश्यक है कि भारत, जो इस धरोहर का जन्मस्थान है, इसे विश्व के समक्ष न केवल एक विकल्प के रूप में प्रस्तुत करे, बल्कि एक जीवनदृष्टि के रूप में स्थापित करे।

आयुर्वेद का मूल स्वरूप: जीवन के संतुलन की शास्त्रीय परिभाषा

आयुर्वेद, ‘आयु’ (जीवन) और ‘वेद’ (ज्ञान) का समाहार है — अर्थात् ‘जीवन का विज्ञान’। यह वेदों से उद्भूत है, और इसकी जड़ें ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद तथा चरक-संहिता, सुश्रुत-संहिता जैसे ग्रंथों में गहराई से निहित हैं। यह चिकित्सा शास्त्र तीन हास्य (वात, पित्त, कफ) के संतुलन, सात धातुओं और त्रिमार्ग के सन्तुलन को स्वास्थ्य का आधार मानता है।

तीन शाखाएँ — नर आयुर्वेद, सत्व आयुर्वेद, और वृक्ष आयुर्वेद — इस पद्धति की व्यापकता को दर्शाती हैं। यह मनुष्य, पशु, और वनस्पति — तीनों के स्वास्थ्य और कल्याण को साथ लेकर चलता है, जिससे यह ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ के भारतीय चिंतन का सजीव उदाहरण बनता है।

चिकित्सा से परे: जीवनशैली, भोजन और आत्मचिंतन का समन्वय

आयुर्वेद का वास्तविक उद्देश्य केवल रोग निवारण नहीं, बल्कि रोगों की रोकथाम और सकारात्मक स्वास्थ्य की स्थापना है। इसकी गहराई में आहारचर्या (डाइट), दिनचर्या (दैनिक जीवन क्रम), ऋतुचर्या (मौसमी जीवन शैली), और मानसिक शुद्धता के सिद्धांत शामिल हैं।

आयुर्वेद का यह समग्र दृष्टिकोण आज के समय में अत्यंत प्रासंगिक है, जहाँ दवाइयाँ भले अस्थायी राहत दे सकती हैं, परंतु असंतुलित जीवनशैली दीर्घकालिक रोगों को जन्म देती है। इसीलिए योग, प्राणायाम, पंचकर्म, और औषधीय वनस्पतियों का संयुक्त उपयोग आधुनिक युग में प्राकृतिक उपचार की ओर लौटने की प्रेरणा बनता है।

चुनौतियाँ और भ्रम: आयुर्वेद के पुनरुत्थान की बाधाएँ

हालाँकि आयुर्वेद का ज्ञान अपार है, परंतु इसके समक्ष अनेक बाधाएँ भी हैं:

  • आधुनिक चिकित्सा से तुलनात्मक विरोधाभास: गुर्दों की भूमिका, सर्जिकल प्रक्रियाओं, और आपातकालीन स्थितियों में आयुर्वेदिक विधियों की सीमाएँ अभी भी स्पष्ट वैज्ञानिक आधार के बिना हैं।

  • औषधीय उत्पादन में असमानता: एक ही औषधि अलग-अलग क्षेत्रों में अलग प्रभाव रख सकती है, क्योंकि उसका स्रोत — मिट्टी, जलवायु, तैयार करने की विधियाँ — भिन्न होती हैं।

  • प्रचार और विश्वास का असंतुलन: अनेक कंपनियाँ बिना वैज्ञानिक परीक्षणों के अपने उत्पादों का प्रचार करती हैं, जिससे गलत धारणाएँ बनती हैं और दवाओं के अति प्रयोग की प्रवृत्ति बढ़ती है।

  • गंभीर बीमारियों के उपचार में सीमाएँ: शल्य चिकित्सा, हृदय रोग, कैंसर जैसी जटिल बीमारियों में आयुर्वेद की सीमाएँ अभी भी स्पष्ट हैं।

सरकारी प्रयास और वैज्ञानिक एकीकरण

भारत सरकार ने आयुर्वेद को आधुनिक संदर्भों में पुनः स्थापित करने के लिये अनेक योजनाएँ चलाई हैं:

  • राष्ट्रीय आयुष मिशन (NAM) के तहत आयुर्वेद सहित अन्य परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों के लिये ढाँचा तैयार किया गया।

  • आयुष संजीवनी ऐप, NCCR पोर्टल, और आहार क्रांति अभियान के ज़रिये लोगों तक जानकारी और सेवाएँ पहुँचाई जा रही हैं।

  • केरल मॉडल आज पूरे भारत के लिये प्रेरणा है जहाँ आयुर्वेद को प्रतिरक्षा प्रणाली सुदृढ़ करने के लिये साक्ष्य-आधारित पद्धति के रूप में अपनाया गया है।

  • NMITLI और रिवर्स फार्माकोलॉजी जैसे विज्ञान-समर्थित मॉडल यह सुनिश्चित करते हैं कि परंपरागत ज्ञान आधुनिक शोध पद्धतियों से जुड़े और विश्वसनीय बने।

भविष्य की राह: आयुर्वेद को नवाचार के साथ जोड़ना
  • साक्ष्य-आधारित अध्ययन: प्रत्येक औषधीय योग, जड़ी-बूटी या उपचार पद्धति को वैज्ञानिक रूप से सिद्ध करना अत्यावश्यक है ताकि वैश्विक मंच पर इसकी विश्वसनीयता स्थापित हो सके।

  • नवाचार और पारंपरिक ज्ञान का संतुलन: आयुर्वेदिक ज्ञान को AI, डिजिटल हेल्थ रिकॉर्ड्स, और स्मार्ट फार्माकोलॉजी के साथ जोड़ा जाए।

  • वैश्विक विस्तार: अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार आयुर्वेदिक उत्पादों का परीक्षण, प्रमाणन और निर्यात भारत को ‘होलिस्टिक हेल्थ हब’ के रूप में प्रस्तुत कर सकता है।

  • शिक्षा में पुनर्गठन: आयुर्वेदिक संस्थानों को अंतर्राष्ट्रीय चिकित्सा शिक्षा के अनुरूप आधुनिक प्रयोगशालाओं और अनुसंधान केंद्रों से सुसज्जित किया जाए।

  • प्रचार में संयम: जनता को सरल भाषा में सटीक और पारदर्शी जानकारी उपलब्ध कराई जाए ताकि भ्रम और अविश्वास की जगह विश्वास और जागरूकता विकसित हो।

भारत की चिकित्सा चेतना का विश्व को उपहार

आयुर्वेद एक शाश्वत दर्शन है, जो जीवन को केवल शारीरिक तंत्र नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा मानता है। यह ‘जीवन के विज्ञान’ को उस बिंदु तक ले जाता है जहाँ शरीर, मन और आत्मा का संतुलन ही स्वास्थ्य कहलाता है।

भारत को चाहिये कि वह इस प्राचीन निधि को केवल भावनात्मक गर्व का विषय न माने, बल्कि इसे वैज्ञानिक, व्यावसायिक और नैतिक आधार पर विश्व स्तर पर प्रस्तुत करे। जब ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना से आयुर्वेद आगे बढ़ेगा, तब न केवल भारत, बल्कि समूचा विश्व एक संतुलित, शांत और स्वास्थ्यपूर्ण जीवन की ओर बढ़ सकेगा।

"प्रकृति में जो शक्ति है, वह औषधि में है। आयुर्वेद उस शक्ति को पहचानने की आँख देता है।"

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