भारत के नववर्ष पर्व: विविधता में एकता का उल्लास
- Wiki Desk(India)

- Mar 21, 2023
- 3 min read
Updated: Jul 12

भारत एक ऐसा देश है जहाँ हर ऋतु, हर दिशा और हर समुदाय की अपनी सांस्कृतिक पहचान और परंपराएँ हैं। इन्हीं परंपराओं में एक विशेष स्थान है नववर्ष पर्वों का, जो भारत के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नामों और रूपों में मनाए जाते हैं। चैत्र और बैसाख मास के आगमन के साथ ही देश के कोने-कोने में बैसाखी, विशु, पुथांडु, नाबा बरसा, बोहाग बिहू, चेटीचंड, गुड़ी पड़वा जैसे पारंपरिक नववर्ष पर्व शुरू हो जाते हैं। ये सभी त्योहार केवल नए वर्ष के स्वागत तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे सांस्कृतिक गौरव, कृषि चक्र, पारिवारिक एकता और आध्यात्मिक भाव के प्रतीक भी हैं।
बैसाखी: सिख परंपरा और खालसा की अमिट स्मृति
बैसाखी, विशेष रूप से पंजाब और उत्तर भारत में मनाया जाने वाला एक प्रमुख पर्व है। यह सौर नववर्ष की शुरुआत और फसल कटाई के उल्लास का प्रतीक है। ऐतिहासिक रूप से, यह 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की स्मृति को जीवित करता है, जब गुरु गोविंद सिंह जी ने पंज प्यारों के माध्यम से नये आध्यात्मिक आंदोलन का सूत्रपात किया। यह त्योहार जलियांवाला बाग हत्याकांड की पीड़ा से भी जुड़ा हुआ है, जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नया मोड़ दिया। आज भी बैसाखी केवल धार्मिक आस्था ही नहीं, बल्कि साहस, त्याग और स्वतंत्रता का प्रतीक बन चुका है।
विशु: केरल की आत्मा में रचा-बसा नववर्ष
केरल और दक्षिण भारत के कुछ अन्य क्षेत्रों में विशु नववर्ष की शुरुआत का पर्व है, जो मेदाम नामक मलयालम महीने के पहले दिन, अर्थात् 14 या 15 अप्रैल को मनाया जाता है। इस दिन लोग विशुक्कणि (सकारात्मक वस्तुओं से भरी थाली) को सबसे पहले देखने की परंपरा निभाते हैं, जिससे जीवन में समृद्धि और सौभाग्य बना रहे। यह पर्व केवल सौंदर्य और भव्यता ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण और आध्यात्मिक आरंभ का संदेश भी देता है।
पुथांडु: तमिल गौरव और सांस्कृतिक पहचान का दिन
तमिल नववर्ष जिसे पुथांडु या पुथुवरुडम कहा जाता है, चिथिरई महीने के पहले दिन पर मनाया जाता है। यह दिन घर की सफाई, मंगल प्रतीकों की सजावट, नई खरीदारी और पारंपरिक व्यंजनों का दिन होता है। यह पर्व तमिल संस्कृति के प्रारंभ, पुनर्नवीनता और पारिवारिक एकता का पर्व है, जिसमें आस्था और परंपरा का गहरा समन्वय होता है।
नाबा बरसा / पोइला बोइशाख: बंगाल की रचनात्मक आत्मा
पश्चिम बंगाल में नववर्ष को 'नाबा बरसा' या 'पोइला बोइशाख' के रूप में मनाया जाता है। यह उत्सव बंगाली कैलेंडर की शुरुआत का प्रतीक है और यह दिन पूरे बंगाल में व्यापारियों द्वारा 'हलकाता' (नई बहीखाता) की पूजा, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, और साहित्यिक गोष्ठियों के साथ मनाया जाता है। यह दिन रवींद्रनाथ टैगोर, बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय जैसे कवियों की काव्यवाणी की स्मृति को भी नया आयाम देता है। यह पर्व धार्मिक समरसता और सांस्कृतिक जीवंतता का परिचायक है।
बोहाग बिहू: असमिया आत्मा का जीवंत उत्सव
बोहाग बिहू, जिसे रोंगाली बिहू भी कहा जाता है, असम का सबसे बड़ा और उल्लासपूर्ण त्योहार है। यह पर्व कृषि चक्र, प्रकृति के पुनर्जागरण, और नवजीवन के स्वागत का प्रतीक है। इसमें गायों का स्नान, पारंपरिक नृत्य-संगीत, बिहू गान और उत्सवों की श्रृंखला होती है। यह केवल नववर्ष की शुरुआत नहीं, बल्कि असमिया पहचान और विरासत का उल्लास भी है।
अन्य पारंपरिक उत्सव: विविधता का संगम
चेटीचंड: सिंधी समुदाय के लिये नववर्ष का पर्व है, जो भगवान झूलेलाल की जयंती के रूप में मनाया जाता है।
गुड़ी पड़वा: महाराष्ट्र में मनाया जाने वाला सौर नववर्ष का प्रतीक है जिसमें गुड़ी (झंडा) घर के प्रवेश पर फहराया जाता है, जो विजय और सौभाग्य का प्रतीक है।
चापचार कुट (मिज़ोरम): मिज़ो जनजातियों का सबसे प्राचीन और सांस्कृतिक रूप से महत्त्वपूर्ण उत्सव है, जिसमें नृत्य, गीत और समुदायिक एकता का दृश्य उपस्थित होता है।
खोंगजोम परबा और थांग-ता: मणिपुर की लोक परंपराएँ हैं, जो ऐतिहासिक युद्धों, वीरता और शौर्य की गाथाओं को संगीत और शस्त्र नृत्य के माध्यम से जीवित रखती हैं।
भारत में नववर्ष केवल तारीख का बदलाव नहीं है, बल्कि यह संस्कार, संस्कृति, समुदाय और आत्मा के नवीकरण का अवसर है। यह समय होता है अपने अतीत को स्मरण कर वर्तमान में संकल्पबद्ध होने का, और भविष्य के लिये एक नई चेतना से आगे बढ़ने का।
हर क्षेत्र, हर भाषा, हर परंपरा में नया साल एक नवसृजन की पुकार है—जहाँ एक ओर खेतों में हरियाली मुस्काती है, वहीं दूसरी ओर हृदयों में सांस्कृतिक गर्व और आत्मिक ऊर्जा जागती है।
भारत के नववर्ष पर्वों में ही उस राष्ट्र की आत्मा बसती है—जो विविधताओं में भी एकता का दीप जलाता है।



