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भारतीय शिक्षा के पुनरुत्थान की यात्रा: कोठारी आयोग से राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 तक

  • Writer: Wiki Desk(India)
    Wiki Desk(India)
  • Jul 18, 2024
  • 4 min read
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शिक्षा – राष्ट्र निर्माण की आत्मा

किसी भी सभ्य और समृद्ध राष्ट्र की बुनियाद उसकी शिक्षा प्रणाली पर टिकी होती है। शिक्षा केवल ज्ञान का संप्रेषण नहीं, बल्कि यह व्यक्ति के चारित्रिक, बौद्धिक और सामाजिक निर्माण की प्रक्रिया है। भारत की प्राचीन शिक्षा प्रणाली इस संदर्भ में आदर्श उदाहरण रही है, जहाँ शिक्षा का उद्देश्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जैसे जीवन के चार पुरुषार्थों की प्राप्ति हेतु व्यक्ति को प्रशिक्षित करना था। तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय वैश्विक ज्ञान केंद्र थे, जहाँ दूर-दराज़ से विद्यार्थी ज्ञानार्जन हेतु आते थे। शिक्षा, गुरुकुल परंपरा के माध्यम से जीवनशैली का अंग बन चुकी थी। लेकिन औपनिवेशिक काल में लॉर्ड मैकाले द्वारा प्रस्तावित शिक्षा प्रणाली ने भारतीय शिक्षा के मूल स्वभाव को विकृत कर दिया और एक ऐसी प्रणाली स्थापित की गई जिसका उद्देश्य एक ऐसा वर्ग खड़ा करना था जो दिखने में भारतीय हो पर सोच से पूर्णतः पाश्चात्य हो।

स्वतंत्र भारत में शिक्षा सुधार की नींव: कोठारी आयोग

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने शिक्षा को पुनर्गठित करने हेतु क्रमिक प्रयास किए। 1948 में राधाकृष्णन आयोग, 1952 में मुदालियर आयोग, और फिर 1964 में कोठारी आयोग का गठन किया गया। डॉ. दौलत सिंह कोठारी की अध्यक्षता में गठित इस आयोग ने भारतीय शिक्षा प्रणाली में व्यापक सुधार की दिशा में 23 महत्वपूर्ण अनुशंसाएँ प्रस्तुत कीं। इन अनुशंसाओं में शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम, मूल्यांकन प्रणाली, शिक्षक प्रशिक्षण, भाषा नीति, महिलाओं एवं वंचित वर्गों की शिक्षा, त्रिभाषा सूत्र, नैतिक एवं वैज्ञानिक शिक्षा, विश्वविद्यालय स्वायत्तता, और व्यावसायिक प्रशिक्षण जैसे विषयों को समाहित किया गया।

कोठारी आयोग का मूल विचार था कि शिक्षा केवल डिग्री अर्जन का माध्यम न होकर, व्यक्तित्व विकास, समाजिक समरसता और राष्ट्रीय लक्ष्यों की पूर्ति का साधन बने। विज्ञान, तकनीक और नैतिक मूल्यों को विद्यालयी स्तर से ही शिक्षा का आधार बनाने की अनुशंसा की गई। साथ ही, 6–14 वर्ष की आयु तक नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के प्रावधान, त्रिभाषा सूत्र, कार्य अनुभव आधारित शिक्षा, और शिक्षा में समान अवसर जैसे क्रांतिकारी सुझावों ने भारतीय शिक्षा को नई दिशा देने की कोशिश की।

1986 की शिक्षा नीति: सीमित सफलता और नई चुनौतियाँ

कोठारी आयोग की अनुशंसाओं के आधार पर वर्ष 1986 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की गई। इस नीति में मानव मूल्यों, रोजगारोन्मुख शिक्षा, महिलाओं एवं कमजोर वर्गों की शिक्षा, और वयस्क शिक्षा को प्राथमिकता दी गई। हालांकि, इसकी प्रभावशीलता सीमित रही। उच्च शिक्षा में कठोर विषय विभाजन, अनुसंधान की उपेक्षा, परीक्षा केंद्रित मूल्यांकन प्रणाली, और वैश्विक प्रतिस्पर्धा की तैयारी में कमी जैसे संकट सतत बने रहे। परिणामस्वरूप, भारत के विश्वविद्यालय वैश्विक रैंकिंग में पिछड़ते गए और शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020: भारत केंद्रित वैश्विक दृष्टिकोण

2017 में के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में गठित समिति ने नई शिक्षा नीति का प्रारूप तैयार किया, जो 2020 में पारित हुआ। यह नीति भारतीय शिक्षा प्रणाली को औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त कर "भारत-केंद्रित, लचीली और समावेशी प्रणाली" बनाने की दिशा में एक परिवर्तनकारी कदम है। नीति का उद्देश्य न केवल शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाना है, बल्कि ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था, नवाचार, और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के अनुरूप नई पीढ़ी को तैयार करना है।

विद्यालयी शिक्षा में प्रमुख परिवर्तन

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में 5+3+3+4 शैक्षिक ढाँचे को अपनाया गया है, जो 3 से 18 वर्ष तक की आयु को कवर करता है। इस ढाँचे में:

  • 5 वर्ष: फाउंडेशनल स्टेज

  • 3 वर्ष: प्रिपरेटरी स्टेज

  • 3 वर्ष: मिडल स्टेज

  • 4 वर्ष: सेकेंडरी स्टेज

इस ढांचे का उद्देश्य केवल पाठ्यज्ञान नहीं, बल्कि समग्र विकास, कौशल आधारित शिक्षा, कला-संगठन, और बुनियादी साक्षरता व संख्यात्मक ज्ञान को सुनिश्चित करना है। वर्ष 2025 तक कक्षा-3 तक के विद्यार्थियों के लिए बुनियादी भाषा और गणितीय समझ का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। साथ ही, अभिनव शिक्षण विधियों जैसे कला-एकीकृत शिक्षा, खिलौना-आधारित शिक्षा, परीक्षा सुधार, और निपुण भारत मिशन को लागू किया जा रहा है।

उच्च शिक्षा में आमूलचूल बदलाव

उच्च शिक्षा के क्षेत्र में यह नीति कई संरचनात्मक परिवर्तन लाती है:

  • बहुविषयक संस्थानों की स्थापना

  • सर्टिफिकेट (1 वर्ष), डिप्लोमा (2 वर्ष), डिग्री (3 वर्ष) और शोधयोग्य डिग्री (4 वर्ष)

  • Academic Bank of Credits (ABC) की स्थापना

  • एक साथ दो डिग्रियाँ करने की अनुमति

  • राष्ट्रीय अनुसंधान प्रतिष्ठान (NRF) की स्थापना, जो उच्च गुणवत्ता वाले अनुसंधान को बढ़ावा देगा

वर्ष 2035 तक सकल नामांकन अनुपात को 50% तक ले जाने का लक्ष्य और 2040 तक सभी उच्च शिक्षा संस्थानों को बहुविषयक संस्थान बनाना इस नीति के दूरदर्शी उद्देश्यों का प्रतीक है।

डिजिटल शिक्षा और भारतीय भाषाओं का पुनरुत्थान

NEP 2020 डिजिटल युग की मांगों को समझते हुए स्वयं, दीक्षा, स्वयं प्रभा, वर्चुअल लैब्स जैसे प्लेटफार्मों को बढ़ावा देती है। साथ ही, 33 भारतीय भाषाओं में शिक्षण सामग्री की उपलब्धता, भारतीय सांकेतिक भाषा (ISL) को विषय के रूप में मान्यता देना, और पारंपरिक ज्ञान को पाठ्यक्रम में शामिल करना इस नीति को भारत की भाषिक और सांस्कृतिक विविधता से जोड़ता है।

शोध और नवाचार की नई संस्कृति

शोध के क्षेत्र में NEP 2020 एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाती है। नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (NRF) का उद्देश्य विश्वविद्यालयों में अनुसंधान संस्कृति को प्रोत्साहित करना और अकादमिक संस्थानों, उद्योगों और प्रयोगशालाओं के बीच समन्वय को सशक्त करना है। अटल रैंकिंग ऑफ इंस्टिट्यूशंस ऑन इनोवेशन अचीवमेंट (ARIIA) जैसी पहलें संस्थानों को नवाचार की दिशा में प्रेरित कर रही हैं।

भारतीय शिक्षा का आत्म-प्रकाश

कोठारी आयोग ने जिस राष्ट्रीय दृष्टि से शिक्षा को देखा था, उसकी पूर्ण परिणति राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के रूप में सामने आई है। यह केवल एक नीति नहीं, बल्कि एक नए भारत के निर्माण का सांस्कृतिक-सामाजिक घोषणापत्र है। यह नीति भारत की परंपरा, मूल्य, विज्ञान और वैश्विक भविष्य को एक सूत्र में पिरोती है। यह शिक्षा को रटंत विद्या से नवाचार, संकीर्ण विषयों से अंतर्विषयक दृष्टिकोण, और औपनिवेशिक मानसिकता से भारतीयता की ओर ले जाती है।

यह वही नीति है जिसकी कल्पना स्वामी विवेकानंद, टैगोर, अरविंद, दीनदयाल उपाध्याय और सुभाष बोस जैसे विचारकों ने की थी — एक ऐसी शिक्षा जो मानव को केवल नौकरी नहीं, उद्देश्य दे, जो मनुष्य को सूचना नहीं, विवेक दे, और जो भारत को केवल राष्ट्र नहीं, विश्वगुरु बनाए।

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