सक्षम भारत की ओर एक ऐतिहासिक कदम: ‘प्रोजेक्ट उद्भव’ और भारतीय सेना की सामरिक चेतना का पुनर्जागरण
- Wiki Desk(India)

- May 1, 2024
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भारत की भूमि केवल ऋषियों और संतों की नहीं रही है, यह वीरों और समर नायकों की भी जन्मभूमि रही है। वेदों से लेकर महाभारत तक और मौर्य-गुप्त युग से लेकर मराठा सैन्य नीति तक, भारत का इतिहास सैन्य रणनीतियों, कूटनीतिक कौशल और युद्ध नैतिकता से परिपूर्ण रहा है। इसी गौरवशाली सैन्य चेतना को पुनः पहचान देने की दिशा में भारतीय सेना द्वारा ‘प्रोजेक्ट उद्भव’ का शुभारंभ एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से प्रासंगिक पहल है।
प्रोजेक्ट उद्भव क्या है?
‘प्रोजेक्ट उद्भव’ भारतीय सेना और यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया (USI) की एक संयुक्त पहल है, जिसका उद्देश्य भारत की प्राचीन सामरिक संस्कृति और रणनीति का अन्वेषण कर उसे समकालीन सैन्य दृष्टिकोण में समाहित करना है। यह परियोजना वैदिक ग्रंथों, महाभारत, रामायण, अर्थशास्त्र, तिरुक्कुरल, और मराठा सैन्य इतिहास जैसे ग्रंथों और परंपराओं से प्रेरणा लेकर भारतीय सेना की कार्यनीतियों को और अधिक प्रभावशाली और सुसंस्कृत बनाना चाहती है।
उद्देश्य और दृष्टिकोण
इस परियोजना का प्रमुख उद्देश्य प्राचीन सामरिक ज्ञान को आधुनिक सैन्य शिक्षा और प्रशिक्षण पद्धतियों में सम्मिलित करना है, जिससे भारतीय सेना सिर्फ तकनीकी रूप से नहीं, बल्कि वैचारिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी सशक्त हो। यह पहल देशज सैन्य परंपराओं को न केवल पहचानती है, बल्कि यह भी मानती है कि इन परंपराओं में ऐसे तत्व हैं, जो वर्तमान समय के जटिल और बहुआयामी संघर्षों में उपयोगी हो सकते हैं।
प्राचीन ग्रंथों से प्राप्त सामरिक सिद्धांत
महाभारत, रामायण, अर्थशास्त्र और अन्य वैदिक तथा शास्त्रीय ग्रंथों में युद्ध रणनीति, संसाधन प्रबंधन, जासूसी, मनोवैज्ञानिक युद्ध, नैतिक आचरण और नेतृत्व के सिद्धांतों का प्रचुर उल्लेख मिलता है।
महाभारत में वर्णित चक्रव्यूह जैसी जटिल संरचनाएँ और धर्मयुद्ध की अवधारणा आधुनिक सैन्य नैतिकता के अनुरूप नेतृत्व, मनोबल और सामरिक समझ की मिसालें हैं।
रामायण में रणनीतिक युद्ध कौशल, विशेष अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग और संसाधन प्रबंधन की सूक्ष्मता दिखाई देती है।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में जासूसी, कूटनीति, गुप्त कार्यवाहियाँ और आर्थिक नीतियों के सहारे युद्ध कौशल का संयोजन आज के हाइब्रिड युद्ध मॉडल से सामंजस्य रखता है।
तिरुक्कुरल जैसे ग्रंथ नैतिक नेतृत्व, अनुशासन और समरसता की शिक्षा देते हैं जो किसी भी सशस्त्र बल की रीढ़ मानी जाती है।
मराठा गुरिल्ला रणनीति छोटे बलों द्वारा तेज़, लचीली और भौगोलिक अनुकूलता के साथ शत्रु पर आघात की श्रेष्ठ परंपरा रही है, जो आज के अर्बन वॉरफेयर या आतंकवाद विरोधी अभियानों में अत्यंत प्रासंगिक हो सकती है।
आवश्यकता क्यों है इस परियोजना की?
21वीं सदी का युद्ध क्षेत्र केवल भौतिक बल की परीक्षा नहीं है, यह एक ‘ज्ञान युद्ध’ भी है, जहाँ मनोवैज्ञानिक, तकनीकी, वैचारिक और नैतिक आयाम एकसाथ सक्रिय रहते हैं।
सीमा पार आतंकवाद, हाइब्रिड वारफेयर और सायबर युद्ध जैसी जटिल चुनौतियों का सामना करने के लिए केवल आधुनिक हथियार नहीं, बल्कि गहराई से सोचने वाली सैन्य रणनीति भी आवश्यक है।
प्राचीन भारतीय ग्रंथों में ऐसे अनेक सिद्धांत हैं जो मानवीय मूल्य, नेतृत्व की गरिमा, सटीक कूटनीति और सशक्त निर्णय क्षमता का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
इससे सेना में भारतीयता की आत्मा को प्रबल किया जा सकता है, जिससे प्रत्येक सैनिक अपनी परंपरा और संस्कृति से प्रेरित होकर समर्पण की भावना से भर सके।
चुनौतियाँ और समाधान की दिशा
जहाँ यह परियोजना अत्यंत प्रेरणादायक है, वहीं इसके सामने कुछ व्यवहारिक चुनौतियाँ भी हैं:
आधुनिक सैन्य दृष्टिकोण से सामंजस्य: प्राचीन सिद्धांतों का अनुवाद और व्याख्या करके उन्हें आधुनिक प्रशिक्षण प्रणाली में समाहित करना एक कठिन कार्य है। इसके लिए उच्चस्तरीय बहु-विषयक विशेषज्ञों की ज़रूरत होगी।
नैतिक और विधिक सीमाएँ: कुछ प्राचीन तकनीकें आधुनिक युद्ध विधियों, जैसे कि जिनेवा कन्वेंशन या मानव अधिकारों के मानदंडों से मेल नहीं खा सकतीं। इसलिए इनका आधुनिक वैधानिक व्याख्या आवश्यक है।
सांस्कृतिक सन्दर्भ का अंतर: प्राचीन सामाजिक संरचनाओं, जैसे जाति आधारित सैनिक भूमिका, को आज की समानता और समावेशिता की विचारधारा से संतुलित करना चुनौतीपूर्ण होगा।
इन चुनौतियों के समाधान हेतु कुछ महत्त्वपूर्ण सुझाव निम्नलिखित हैं:
एक समर्पित प्राचीन सैन्य अध्ययन केंद्र की स्थापना हो, जो इन ग्रंथों का गहन अध्ययन कर व्यावहारिक अनुप्रयोग सुझाए।
बहु-विषयक विशेषज्ञों की एक टीम गठित की जाए जिसमें सैन्य रणनीतिकार, भाषाविद, इतिहासकार, शास्त्रज्ञ, और मनोवैज्ञानिक सम्मिलित हों।
सिमुलेशन और युद्ध खेल अभ्यासों के माध्यम से सिद्धांतों की प्रासंगिकता को परखा जाए।
अंतरराष्ट्रीय कानूनी ढाँचे के अंतर्गत सभी रणनीतियों का मूल्यांकन किया जाए।
‘प्रोजेक्ट उद्भव’ भारतीय सेना द्वारा भारतीय ज्ञान परंपरा में निहित सामरिक मेधा की पुनर्स्थापना का साहसिक प्रयास है। यह परियोजना न केवल हमारे सैन्य तंत्र को सशक्त बनाएगी, बल्कि यह भारत की उस सांस्कृतिक चेतना को भी पुनर्जाग्रत करेगी जो युगों से रणभूमि में धर्म, नीति और समर्पण का प्रतीक रही है।
सक्षम भारत के निर्माण की इस यात्रा में, ‘प्रोजेक्ट उद्भव’ एक ऐसा दीप है जो अतीत की लौ से वर्तमान को आलोकित कर, भविष्य के पथ को सुरक्षित और समृद्ध बनाएगा।



