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“सूर्य की भूमि: ललितादित्य का वैभव और मार्तण्ड मंदिर की दिव्यता”

  • Writer: Wiki Desk(India)
    Wiki Desk(India)
  • May 9, 2022
  • 3 min read
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भारत की दिव्य सूर्य परंपरा और कश्मीर की स्वर्णिम धरोहर

भारत की सांस्कृतिक परंपराओं में सूर्य का स्थान सर्वोच्च है—वह केवल एक ग्रह नहीं, अपितु जीवन, ऊर्जा और चेतना का स्रोत माना गया है। इसी सूर्य के प्रति भारतीय श्रद्धा का भव्यतम उदाहरण है — मार्तण्ड सूर्य मंदिर, जो न केवल भारत के प्राचीन वास्तुशिल्प का प्रतीक है, बल्कि कश्मीर की सांस्कृतिक गरिमा, धार्मिक सहिष्णुता और आध्यात्मिक वैभव की स्मृति भी है।

मार्तण्ड मंदिर के खंडहर आज भी सूर्योपासना की उस कालजयी परंपरा की गवाही देते हैं, जब कश्मीर न केवल धार्मिक दृष्टि से जागरूक था, बल्कि शौर्य, समृद्धि और स्थापत्य के चरम पर था।

मार्तण्ड सूर्य मंदिर: दिव्यता और विनाश के मध्य कालजयी स्मारक

मार्तण्ड सूर्य मंदिर, जो वर्तमान में जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग से पाँच मील की दूरी पर स्थित है, 8वीं शताब्दी में कार्कोट वंश के महान सम्राट ललितादित्य मुक्तापीड द्वारा निर्मित किया गया था। 'मार्तण्ड' संस्कृत में सूर्य का ही पर्याय है, और यह मंदिर उस काल की महान सूर्योपासना परंपरा का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

यह मंदिर अद्भुत स्थापत्य कला का उदाहरण था, जिसमें गंधार, गुप्त, और चीनी वास्तुकला की मिश्रित झलक मिलती है। हालांकि आज यह केवल खंडहर रूप में शेष है, फिर भी इसकी भव्यता, स्तंभों की सज्जा और अवशेष इसकी पुरानी महिमा को स्पष्ट करते हैं। अफ़सोस की बात यह है कि इस मंदिर को 14वीं शताब्दी में मुस्लिम शासक सिकंदर शाह मिरी ने ध्वस्त करवा दिया।

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) ने इसे राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारक के रूप में घोषित किया है। यह मंदिर न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भारत की प्राचीन अस्मिता का प्रतीक है।

ललितादित्य मुक्तापीड: वह राजा जिसने भारत की सीमाओं से परे इतिहास लिखा

सम्राट ललितादित्य का जन्म 699 ईस्वी में हुआ था। वह कार्कोट नागवंशी कायस्थ वंश से थे, जो कश्मीर की सैन्य परंपराओं में प्रमुख भूमिका निभाते थे। ललितादित्य का युग भारतीय इतिहास में राजनीतिक साहस, सांस्कृतिक समृद्धि और धार्मिक समन्वय का अद्वितीय काल था।

उन्होंने 724 ईस्वी में सत्ता संभाली, जब भारत पर पश्चिमी आक्रमणों का संकट छाया हुआ था। अरबों ने सिंध और मुल्तान तक कब्ज़ा कर लिया था और कश्मीर के दरवाज़ों पर दस्तक दे रहे थे। ऐसे समय में ललितादित्य ने साहसिक युद्ध अभियान चलाकर अरब सेनाओं को पराजित किया, लद्दाख, काबुल, मध्य एशिया, तुर्किस्तान, और यहां तक कि मध्य चीन तक अपना प्रभाव फैलाया।

उनकी तुलना सिकंदर महान से की गई — परंतु उनसे भी महान कार्य उन्होंने भारत के लिये किया। यह साम्राज्य वैभवशाली भी था और धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक भी।

धर्म, वास्तु और विकास में अग्रणी

ललितादित्य मुक्तापीड केवल योद्धा नहीं थे, वे एक समावेशी शासक, कला संरक्षक, और धर्मनिष्ठ राजा भी थे। वे भले ही वैष्णव धर्म के अनुयायी थे, परंतु उन्होंने बौद्ध धर्म, शैव और शाक्त परंपराओं, और यहां तक कि स्थानीय जनजातीय आस्थाओं को भी संरक्षण प्रदान किया।

उन्होंने परिहासपुर को राजधानी बनाया और वहाँ पर अद्वितीय मंदिरों और बौद्ध स्थापत्य का निर्माण कराया। उनकी शासन नीति में धर्म और संस्कृति की सहिष्णुता झलकती है, जो आज के भारत के लिये एक आदर्श है।

कार्कोट राजवंश: कश्मीर का स्वर्णयुग

कार्कोट वंश ने कश्मीर में 7वीं से 9वीं शताब्दी तक शासन किया। इस वंश के संस्थापक दुर्लभवर्धन थे और ललितादित्य इसके सबसे प्रतापी सम्राट माने जाते हैं।

इस काल में कश्मीर केवल एक भूखंड नहीं, बल्कि एक जीवंत सांस्कृतिक और बौद्धिक केंद्र बन गया था। वास्तुकला, साहित्य, युद्धनीति और धर्म सभी क्षेत्रों में यह वंश अग्रणी रहा। उनके द्वारा बनाए गए मंदिरों, स्तूपों और नगरों के खंडहर आज भी उनके गौरवशाली अतीत की कहानी कहते हैं।

नवभारत के लिये प्रेरणा: मार्तण्ड की प्रासंगिकता

आज जब भारत अपनी सांस्कृतिक जड़ों की ओर लौटने और वैश्विक मंच पर अपनी धरोहर को पुनः प्रतिष्ठित करने का प्रयास कर रहा है, तब मार्तण्ड सूर्य मंदिर जैसे स्थलों का संरक्षण और पुनर्पाठ आवश्यक हो गया है।

यह मंदिर न केवल प्राचीन स्थापत्य कला का उदाहरण है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाता है कि एक समर्पित राजा, जब धर्म, संस्कृति और राष्ट्रहित को साथ लेकर चलता है, तो वह भारत को वैभव के शिखर तक पहुँचा सकता है।

मार्तण्ड मंदिर का पुनरुद्धार और वैश्विक स्तर पर इसकी प्रतिष्ठा, भारत की सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की पुनर्स्थापना का प्रतीक बन सकती है।

सूर्य की छाया में भारत का तेजस्वी अतीत

मार्तण्ड मंदिर एक स्मृति है—भविष्य के लिये चेतावनी भी और प्रेरणा भी। यह बताता है कि भारत की संस्कृति, उसकी परंपरा और उसकी चेतना कितनी विशाल थी, और यदि हम उसे संजो सकें, तो भविष्य भी उतना ही उज्ज्वल होगा।

सम्राट ललितादित्य और मार्तण्ड सूर्य मंदिर जैसे प्रसंग भारत के नवनिर्माण के अध्याय में स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने योग्य हैं। उन्हें केवल इतिहास के पन्नों में नहीं, जनचेतना के केंद्र में स्थान मिलना चाहिए

“जहाँ सूर्यास्त होता है, वहाँ से ललितादित्य की कीर्ति प्रारंभ होती है।”

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